Random creation while evening walk..
बारिश की बूंदों की तरह नाज़ुक,
एक अल्फ़ाज़ में पूरे आयत के जैसी है;
मेरे सांस में तेरी हवा के जैसी है,
ये कुछ नहीं पर एक छोटी पहेली जैसी है।
ज़िन्दगी कैसी है, तेरे मेरे जैसी है
ग़म और खुशी के अश्क,
इसके वजूद में इंटो के जैसी है;
इनका बंधन एक नवरंग है,
ये तुम्हारे काले और सफेद जुड़े जैसी है।
ज़िन्दगी कैसी है, तेरे मेरे जैसी है
हर मौसम के हम है आशिक,
मेरा हुनर, मेरी रचना के जैसी है;
ये इन्कलाब मेरा मेरी ज़िन्दगी से चलता रहेगा,
कैसी भी हो, ये सच्चाई के जैसी है।
1 comment:
वाह, बहुत खूब
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