एक सफेद कंबल, एक सफेद चादर,
एक सफेद दरख़्त,
एक सफेद "चस्मा"
और एक सफेद हम |
एक सिसक थी मेरी,
जो इसके दीदार से निकल गई |
एक अश्क मेरा कहीं ज़मीन पर होगा,
वो भी सफेद |
जाने कौन सा मौसम है ये,
मेरे दिल को कपड़े मे लपेट कर सो गया है,
वक़्त मे से ये लम्हा निकल दो,
तो ये ज़िंदगी भी सफेद |
एक अधूरी रात की सुबह हो तुम,
एक उदास गज़ल का मुखड़ा हो तुम,
ए सुर्ख बर्फ तू सोना मत,
क्यूंकी मेरे जज़्बात है सफेद |
आनंद बोड़ा
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