Saturday, November 23, 2024

पुरुष - A Hindi poem on Men for International Men's Day



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मेहनत जिसकी रीड की हड्डी, धैर्य जिसका बल,

कर्म की पथ पर चलता वो है पुरुष अचल ।

अपने लक्ष्य को भेदना, अर्जुन से है सीखा,

पर उसके मन की वेदना का सार किसी ने न देखा ।।


एक तुला के कांटे के सामान,

करता है वो परिवार का संतुलन।

अपनी आशा, आकांशा और सपने का त्याग कर,

करता है वो समाज की तपिश का आलिंगन ।।


एक बेटा, एक पुत्र, एक भाई,

यही नहीं, वो है एक आज्ञाकारी जमाई ।

दिन, रात, महीने और साल गुजर गए,

पुरुष खड़ा रहा, और समय के दूत चुपके से निकल गए ।।


वो सोचता रहा की उसकी अर्धांगिनी कभी तो पारवती बनेगी,

पर आधुनिक काल में केवल काली की छवि रहेगी ।

ऐ पुरुष, तू शिव की तरह हलाहल का पान कर,

संघर्ष क्षणिक है, अपने कर्म से मानवता को प्रणाम कर ।।


आनंद बोड़ा

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